कविता
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हरियर पात, जीवन संजोने
ता धरि हरियर रहइछ
जा धरि गाछक ताग पकड़ने
जुड़ल ओकरे सँ रहइछ
थाप बसातक, जोड़गर अबइछ
सुटकल पात जे, नेह पबइछ
जेना करेजमे माईक साटल
नेन्ना, बुदरुक रहइछ।
कोनो पात जे, बड़का भ गेल
डंटी सँ ओ छिटकल रहइछ
कोना बचाओत गाछ ऐंठल केर
बसात नेने दूर जा पटकइछ।
तहिना हमहूँ, हे संगी सुनू
संस्कृति केर जँ मोल नै बुझबै
दूर फेकायब जा क कतौ
के चीन्हत आ ककरा चिन्हबै।
...
कवयित्री - कंचन झा
कवयित्रीक ईमेल आईडी - kjha057@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु अहि ब्लौगक ईमेल आईडी - editorbejodindia@gmail.com
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