पाहुन मिलन
मास अछि माघि माथ पर फूसक चार
गोबर सौं नीपल आँगन सूरज बिन अनहार,
छी व्याकुल हमसब करि अपने मिलन
पाहुन, अछि मिथिला नगरी में हाँक इंतज़ार ।
दलान खपरैल कहुना क’ महफ़िल सज़ल
ठहाका पाहुन के लोक टोला के नै कम रहल,
दिन में खिलल धूप भेल राति में घूर मिलन
स्वागत अछि पाहुन अपनेक बार बार ।
चलल सिलसिला व्यंजन के भेल भोर सौं साँझ
तिलकोरक तरुआ संग माछ फेर पिज़्ज़ा तक
थारी पर पाहुन संग ‘चुन्नु-मुन्नू’ सहो बैसल
करियौ चाहे माँग पर घोर घमर्थन आर आ पार ।
भोर भेल फेर सौं मुँह फ़ूलल आकि पान भड़ल
तैयार पाहुन के मुख छल बड्ड चिक्कन चुनमन,
कहलाह जाईं छी फेर होयत सासुर में पुनः मिलन
क़हय मिथिला पाहुन के स्वागत करि बार बार ।
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कवि - विजय बाबू
छायाचित्र सौजन्य - विजय बाबू
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल -editorbejodindia@yahoo.com

Bahut nik likhlaun 🤗
ReplyDeleteधन्यवाद ।
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