Tuesday 24 October 2017

भाषा केर मनोविज्ञान / आशीष अनचिन्हार


तीन टा बिंदु


भाषा केर मनोविज्ञान भाग-1


जखन केओ कहै छै जे "मैथिली मधुर भाषा थिक" तखन हमरा ओहिसँ बेसी बड़का गारि किछु नै बुझाइत अछि। कोनो भाषा मधुर वा खटगर वा नुनगर की तेलगर होइते नै छै। आ जँ मधुर होइ छै तँ किएक?

ऐ प्रश्नपर एबाक लेल बड़ साहस चाही।

मध्यकालीन मिथिला सामंती छल। सामंत बैसल की चमचा सभ घेरि अपन समस्या सुनबए लागैत छलाह। आ जखन केकरो अहाँ अपन समस्या सुनेबै वा की केकरो चमचइ करबै तखन भाषा तँ मधुर राखहे पड़त। हमरा जनैत मैथिली अहीठाम मधुर भाषा थिक। कारण मैथिल चमचइ कर'मे बहादुर होइ छथि। मधुर बोल तँ राखहे पड़तन्हि।


ठीक विपरीत मिथिलाक दलित ओ गैर-सवर्णक भाषामे चमचइ नै छै तँए ओहिमे टाँस बेसी बुझि पड़ै छै आ ब्राम्हण-कायस्थ सभ ओकरा रड़बोली कहै छथि।मुदा हमरा जनैत ई मात्र दृष्टिगत भेद अछि। जकरा अपन बाँहिपर विश्वास छै ओकर बोली ओ भाषामे टाँस रहबे करतै--जेना मिथिलाक दलित वर्गक मैथिली।आ जे चमचइमे लागल रहत तकर बोली ओ भाषामे मधुरता रहबे करतै--जेना मिथिलाक ब्राम्हण ओ कायस्थ वर्गक मैथिली।


भाषा केर मनोविज्ञान भाग-2


ई हम दू मिनट लेल मानि लै छी जे ब्राम्हण-कायस्थ महातेजस्वी होइ छथि तँ हुनके टा पुरस्कार भेटबाक चाही। मुदा की ब्राम्हण-कायस्थ दरभंगे-मधुबनी-सहरसामे छै वा मिथिला मने की दरभंगे-मधुबनी-सहरसा छै। ऐ समस्यापर जखन हम दृष्टिपात करै छी एना बुझाइए----
१) जेना-जेना दरभंगा-मधुबनी-सहरसाक क्षेत्र खत्म होइत जाइए तेना-तेना ब्राम्हण-कायस्थ ओ आन छोट जातिक भाषाक बीच अंतर खत्म होइत जाइए (१००मे ९७टा केसमे)। चाहे ओ सीतामढ़ी हो की मुज्फफरपुर हो की पूर्णिया हो की भागलपुर हो की समस्तीपुर हो की बेगूसराय हो की चंपारणक किछु क्षेत्र (झारखंडक क्षेत्र बला लेल एहने बुझू, राजनैतिक बाध्यताकेँ देखैत नेपालीय मैथिलीक उल्लेख नै क' रहल छी)।

२) जेना-जेना ब्राम्हण-कायस्थओ छोट जातिक भाषाक बीच अंतर खत्म होइत गेलै ब्राम्हणवादी सभ ओकरा मैथिली मानबासँ अस्वीकार क' देलक। ऐ कट्टर ब्राम्हणवादी सभहँक नजरिमे ई छलै जे भाषाक भेदसँ ब्राम्हण वा छोट जातिमे भेद छै। आजुक समयमे अंगिका ओ बज्जिका भाषाक जन्म ब्राम्हणवादक एही प्रवृतिसँ भेल अछि। किछु दिन पहिने नरेन्द्र मोदी द्वारा मुज्फफरपुरमे भोजपुरीमे भाषण देब एही ब्राम्हणवादक विरोध अछि आ हम एकर स्वागत करै छी तथा ओहि दिनक बाट जोहि रहल छी जहिया ओ दरभंगा-मधुबनीमे भोजपुरी बजता। जँ ठोस विचारक रूपमे आबी तँ निश्चित रूपें कहि सकै छी जे मैथिलीकेँ तोड़बामे ई ब्राम्हणवादी सभ १०० प्रतिशत भूमिका निमाहला। जँ कदाचित् ई ब्राम्हणवादी सभ दरभंगा-मधुबनी-सहरसासँ हटि क' सीतामढ़ी, मुज्जफपरपुर, पूर्णिया, भागलपुरक,चंपारण आदिक ब्राम्हण-कायस्थकेँ पुरस्कार देने रहितथि तँ कमसँ कम मैथिली टुटबासँ बचि गेल रहैत। ई अकारण नै अछि जे रामदेव झा, चंद्रनाथ मिश्र अमर, सुरेश्वर झा आदि एहन महान ब्राम्हणवादीक कारणे दरभंगा रेडियो स्टेशनसँ बज्जिकामे कार्यक्रम शुरू भेल।

३) आ जँ मैथिली टुटबासँ बचि गेल रहितै तखन मिथिला राज्य लेल एतेक मेहनति नै कर' पड़ितै। कारण चंपारणसँ गोड्डा धरि सभ अपन भाषाकेँ मैथिली बुझितै। ऐ ठाम हम ई जोर द' क' कहब चाहब जे पुरान होथि की नव राज्य आंदोलनी सभ सेहो ब्राम्हणवादी छथि। अन्यथा ओ सभ सेहो रामदेव झा. चंद्रनाथ मिश्र अमर, सुरेश्वर झा आकी आन-आन मैथिली विघटनकारी सभहँक विरोध करतथि।


आखिर की कारण छै जे धनाकुर ठाकुर अपन मानचित्रमे चंपारण वा गोड्डाकेँ तँ लै छथि मुदा ओहि क्षेत्रक साहित्यकार लेल पुरस्कारक माँग नै करै छथि। ई प्रश्न मात्र धनाकुरे ठाकुरसँ नै आन सभ राज्य आंदोलनीसँ अछि।


ऐठाम ई बिसरि जाउ जे पुरस्कार कोनो छोट जातिकेँ देबाक छै। जँ ब्राम्हणे-कायस्थकेँ देबाक छल तखन फेर सीतामढ़ी, मुज्जफपरपुर, पूर्णिया, भागलपुरक,चंपारण आदिक ब्राम्हण-कायस्थकेँ किएक नै ?
तँ आब ई देखबाक अछि जे के-के मिथिला राज्य आंदोलनी ब्राम्हणवादी छथि आ के-के साँच मोनसँ मिथिला राज्यकेँ चाहै छथि।

भाषा केर मनोविज्ञान भाग-3

लोक जखने ब्राम्हणवादक नाम सुनै छथि हुनका बुझाइत छनि जे सभ ब्राम्हणकेँ कहल जाइत छै। मुदा हमरा लोकनि बहुत पहिनेसँ कहैत आबि रहल छी जे ब्राम्हण आ ब्राम्हणवादक कोनो सम्बन्ध नै। कोनो चमार सेहो ब्राम्हणवादी भ' सकै छथि। ब्राम्हणवाद जाति विशेष नै भेल ई मात्र मानसिकता भेल जे कोनो जातिमे भ' सकैए। ब्राम्हणवादक प्रमुख तत्व वा लक्षण एना अछि---

१) केकरो आगू नै बढ़' देब------ एकटा छलाह स्व. रमानाथ मिश्र "मिहिर"। ई नीक हास्य-व्यंग केर कविता लीखै छलाह। मुदा ई मैथिली साहित्यमे आगू नै बढ़ि सकला। कारण? कारण हिनक दोख छलनि जे ई चंद्रनाथ मिश्र " अमर" जीक भातिज छलखिन्ह। दालि आ देयाद जते गलत तते नीक। साहित्यक स्तरसँ ल' क' पारिवारिक स्तरपर रमानाथ मिश्रजीकेँ पददलित होम' पड़लनि।

ब्राम्हणवाद मात्र दलिते लेल नै छै। बहुत रास ब्राम्हण अपनो जाति केर लोककेँ आगू नै बढ़' दैत छै।

२) मात्र अपने टाकेँ नीक बुझब--- जँ साहित्य अकादेमीक लिस्ट बला झा-झा सभ प्रतिभावान छथि तँ फेर मैथिली साहित्य विश्वक छोड़ू भारतीय साहित्य केर समकक्ष किएक नै अछि। आ जँ प्रतिभे छै तखन तँ श्री विलट पासवान "विहंगम" भारतीय राजनीतिसँ ल' क' मैथिली साहित्य धरि योगदान देने छथि। की विहंगम जी प्रतिभाहीन छथि। विहंगम जी सन-सन आर बहुत बेसी नाम अछि।

३) परिवारवाद---- रामदेव झा जखन रिटायर भेलाह तँ साहित्य अकादेमीमे ओ अपन ससुर चंद्रनाथ मिश्र अमरकेँ बैसा देलाह। तकर बाद अमर जी अपन समधि विद्यानाथ झा विदितकेँ बैसेलाह। आब विदितजीक निकट संबंधी (चेलाइन) छथि।
कारण-- ब्राम्हणवादक एकमात्र कारण हीन भावना अछि।
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लेखक- आशीष अनचिन्हार
लेखकक वेबसाइट- https://anchinharakharkolkata.blogspot.com/
लेखक प्रसिद्ध मैथिली गज़लकार आ मैथिली गज़ल केर इतिहासकार तथा गज़ल-शिल्प विशेषज्ञ छथि. ई सभ सँ लोकप्रिय मैथिली ई-पत्रिका 'विदेह' के प्रसिद्ध मैथिली साहित्यकार गजेन्द्र ठाकुरक संग प्रकाशित कय रहल छथि आ निर्लिप्त भाव सँ मैथिली के प्रचार प्रसार मे अनेक दशक सँ लागल छथि. 

Friday 13 October 2017

बाबानामा -11 / ओम प्रकाश

कनि हमरो सुनू


सुनलियै जे बाबा गुरूघंटालक आश्रममे दौड़ कूद भ' रहल छै। हमरा कनी आश्चर्य भेल, तैं जिज्ञासा शान्त करबाक लेल हुनकर आश्रम पहुँचि गेलहुँ। ओतय देखैत छी जे आश्रमसँ सटल बड़का खाली फील्डमे जत्र कुत्र लाठी आ डंटा लगा कए बाधा ठाढ़ कएल अछि। बाबा रहि रहि कए चेला सभकेँ टिटकारी दएत रहथिन आ चेला सभ ओहि बाधा सब परसँ कूदैक कूदैक कए एम्हर ओम्हर दौड़ैत छल। हम बाबासँ पूछलियैन्ह -"ई की खेला करा रहल छियै बाबा। हम बूझि नै सकलहुँ।" बाबा हकमैत बाजलाह -"ई पड़ाय केँ ट्रेनिंग द' रहल छियै। तूहू ट्रेनिंग लइये लेह।" हम कहलियन्हि -"पड़ाय केर ट्रेनिंग! हम किछु बूझलौं नै।" बाबा बैसैत कहलन्हि -"एम्हर अखबार मे पढ़लहुँ जे आब एम्हरका मरीज जँ दिल्ली एम्समे ईलाज करबाबै लेल जेतैक तँ ओकरा सभकेँ खिहारि देल जेतैक। ओना तँ कोशिश ई कएल जेतैक जे एम्हरका लोक जे एम्स जाइथि ओ कतौ आन ठामक पता लीखाबथि, जाहिसँ ओ खिहारल नै जाइथि। मुदा खिहारल जयबाक स्थितिमे पड़ाय केर ट्रेनिंग रहतै तँ लोक आरामसँ पड़ा जायत। तैं ई ट्रेनिंग द' रहल छियै।" हम आगाँ बाजलहुँ-"मुदा ओतय जयबाक जरूरति की छै। अपन राज्यमे एतेक रास मेडिकल कओलेज तँ छहिये। ओतय जा सकैत छथि।" बाबा कहलन्हि -"एक तँ ओतय डाक्टरे नै भेंटैत छै। जँ कहुना भरतियो भ' जेबहक तँ तोहर किछु सुनबे नै करतह। किछु बाजबहक वा विरोध करबहक तँ लाठीसँ सोंटल जयबहक। तोरा बूझल छह जे मेडिकल कओलेज मे पढ़निहार सब ईलाज जानथि वा नै मुदा लाठी भाँजनाइ खूब जानैत छथि। सब विंध्याचली लाठी राखैत छथि आ लाठी भाँजनाइ केर कलाक प्रदर्शन बीच बीचमे क' कए अखबारक मुखपृष्ठक शोभा बनैत रहैत छथि। तैं दिल्लीक एम्से जेनाइ ठीक रहतह। किएक तँ ओतुक्का आदेशमे खाली खिहारै लेल कहल गेल छै, लठियाबै लेल नै कहल गेल छै। आ जँ खिहारतै तँ पड़ाय केर ट्रेनिंग काज एतैक।" हम कहलियन्हि -"धन्य छी अहाँ बाबा। मुदा हमरा जकाँ भारी शरीर बला लोकक लेल तँ खिहारनाइ आ लठियेनाइ दुनू भारी पड़त। हम की करी।" बाबा मुस्कियाइत कहलन्हि -"तोरा सब लेल अपन गामक वैद्य जी छथुन्ह ने। हुनकर दोकान बन्न भ' गेल छलन्हि। आब चुहचुही घुरि एतन्हि। तू ओतहि चलि जइयह।" हमर अधकपारी आरो तीव्र भ' गेल छल, तैं बाबासँ आदेश लएत वैद्य जीक दोकान दिस विदा भ' गेलहुँ।
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अहि आलेखक लेखक -ओम प्रकाश झा
ओम प्रकाश जी मैथिली केर उत्तम गजलकार छथि आ हिनकर गज़ल-संग्रहक नाम छै- 'कियो बूझि नहि सकलि हमरा'. गद्य विधा मे ई हास्य-व्यंग्य मे पारंगत छथि. वर्तमान में आयकर विभाग मे गुप-ए पद पर आसीन छथि.
अपन प्रतिक्रिया अहाँ ईमेल सँ hemantdas_2001@yahoo.com पर पठा सकैत छी.