Friday 24 April 2020

युवा प्रतिभा: - लॉकडाउन, लॉकडाउन देखै छी / कवि - विजय बाबू

कविता

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हिट स्प्रे करय छी-

लॉकडाउन लॉकडाउन देखय छी
घरे में दिन भरि बंद बैसल छी
भिन-भिन घूमि मच्छर चुटि काटी
तरे हम हरियर हिट स्प्रे करय छी ।

लॉकडाउन के अनुभूति करय छी
डरे सदिखन सोच में पड़ल छी
बाम कात गुनगुनेने, दहिना काटी
कोने कोने हम हिट स्प्रे करय छी ।

लॉकडाउन २१ बाद लॉकडाउन १९
दिने काटई में मशगूल रहय छी
हवा में मच्छर आ भूमि सँ झींगुर
धेने हम लाल हिट स्प्रे करय छी ।

लॉकडाउन बीच जूम झमाबै छी
डिजिटल दुनियाँ पसारि रहल छी
देखि चाल आ आवागमन फेर
बेर बेर हिट सभदिस स्प्रे करय छी 

लॉकडाउन लॉकडाउन में बारह की
बजाय साढ़े बारह हम तत्पर छी
थोड़य हार मानय बला हमहूँ छी
हिट स्प्रे में दिन-राति एक केने छी ।



अठबज्जर कोरोना

जो रे अठबज्जर चिनिया
बपौती के संभाल तू
 रे बज्जरखसौना मुरिमचरुआ
परा एत सँ, आब भाग तू,

कूटि देतौ आब ई दुनिया
रे तत् माइर खेमे तू
जो रे घूमय अप्पन नरक मे 
कोरोना आब बिलेमे तू ।

गिन दिन आब रे बैमंठा
जो अपन गाम के संभाल तू
बिन बजौने आयल मेहमान
बापे घर के कर देखभाल तू
......
.

कवि - विजय बाबू
कविक ईमेल - vijaykumar.scorpio@gmail.com
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Wednesday 1 April 2020

मचल अछि हाहाकार / कवयित्री - चंदना दत्त

कोरोना

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मचल अछि हाहाकार
चित्कार ओ प्रतिकार
सांचे बनि गेल विश्व एकटा गाम
सब अपने लेल हरान
काल्हि धरि जे विकासक चकरी घेमि रहल छल
दुनिता बस दौगैत जा रहल छल
थम्हि गेल ओ दौगय के उन्माद कतय धरि हैत विकास
ई विकास वा हैत विनाश
बच्चा अछि टुग्गर आ मायबाप असगर
घर मे औन्हल बासन
आ होटल  रमण चमन
गोर लगय मे अबैत अछि लाज 
चुम्माचाटी सं चलि रहल काज
जं कोरोना सिखोलक प्रणाम
त करैत छी हम एकरे नमस्कार बारंबार
मचल अछि हाहाकार
चित्कार आ हाहाकार.
.....
कवयित्री -चंदना दत्त
कवयित्रीक ईमेल - duttachandana01@gmail.com
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कोरोना विषयक ग़ज़ल आ गीत / शायर - अजीत आज़ाद

कविता

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हाथ खिया गेल साबुन रगड़ैत
टीवी खोलिते डर लगैए
उचटि गेल मोन मोबाइलो सँ
शमशाने सन घर लगैए

आब की करबै कक्का हम
बंद भेल छैक चक्का यौ
लसफ़स-लसफ़स मोन करैए
बनि गेलहुँ मुहतक्का यौ

मुह जाबिक' बड़द भेल छी
पाउज करैत छी मोन दबने
सूतल-सूतल निन्न पड़ायल
उखड़ल बाइसिर पोन दबने

परिथन लगबैत-लगबैत आब
बुझि गेलियै रोटी के भाव
बन्हा गेल अछि गरदनि मे घंटी 
सुतरि गेलनि घरनी के दाव।


गीत 

जिनगी के गाड़ी मे सभ छै सवार
किछुए ओहार मे, छै बाकी उघाड़
देखाउंसे मे बहै छै बाँचल-खुचल रस
कद्दुकस, कद्दुकस, कद्दुकस....

बैठल-बैठारी के भरि थारी भात
काज लेल उताहुल के मारैए लात
मगन अछि बीच बला रंगे-रभस
कद्दुकस, कद्दुकस, कद्दुकस

घर मे ढुका देलक एकटा कोरौना
कहिया ई भागत बज्जर खसौना
घरनी के आगू सभ मरदा बेबस
कद्दुकस, कद्दुकस, कद्दुकस

झड़कल सँ नीक, झंपने रहू मुह
कलेमचे करैत रहू, नै कहियौ ऊँह
साँझ होइत-होइत कहती चाबस
कद्दुकस, कद्दुकस, कद्दुकस.
.......

कवि - अजीत आज़ाद 
कविक ईमेल -  lekhakajitazad@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु ब्लॉगक ईमेल - editorbejodindia@gmail.com