Thursday 26 September 2019

समय-चक्र आ फिकिरक दुहूकमे / कवि - विजय कुमार

समय-चक्र आ फिकिरक दुहूकमे

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समय अहाँ आबै छी समय सँ 
मुदा समय सँ चलियो जाई छी
समय अहाँक शिकारमे हम, आ
ब्योंत में सदिखन अहाँ रहै छी।

अहाँक सोझा आबि बूझि नै
जानी नहि हम की की पबै छी?
कतेक कुंठा सेहो गड़ल अछि
बीत सँ अहाँ दहाड़ि रहल छी

समय अहाँक अकल्पनीय परिधिमे
सब संगहि चलय, प्रयासमे छी
अहाँक राह बिनु रोड़ा, हमरा सँ जुदा
संगहि लेल झटकारि रहल छी।

मोनक कोन में दर्द एक शूल सन
हँसि दैत छी तैयो बसंतक फूल सन
काल-कालक मध्यक अंतरालमे
उमंग स्वाधीनता सँ पाबि रहल छी

समय अहाँक़ अद्वीतिय चालमे
हम बालक उम्मीद केँ सटने रहै छी 
देखू, अहि चालमे कोनो चाल चलू नै
हम शिष्ट बनि संग चलि रहल छी।
....
कवि - विजय बाबू
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@yahoo.com

Wednesday 11 September 2019

युवा प्रतिभा - विजय बाबु / शुभ भिनसर आ गुरु

श्री विजय बाबु मैथिलीमे कविता लिखबाक प्रयास कयलन्हि अछि. हिनकर मैथिलीक प्रति अनुराग केँ प्रोत्साहन देबा लेल हुनकर दू टा कविता प्रस्तुत अछि- 

 शुभ भिनसर

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अगणित अनुपम स्वागत भोरे भोरे
जीवनक चक्र चलय भोरे अनहारे
परमात्मक असीम कृपा बरसय
मनमस्त सूरजक लाली सँ प्रभात ।

मात-पिताक केर आशीर्वाद पाबि
संगहि पैघक आ गुरुक आशीर्वाद
भारतवर्ष केँ हजार सालक परम्परा
स्नान-ध्यान संग करि सूर्य नमस्कार 

छल जे दीवालीक प्रातः केँ सुप्रभात
जन्म भेल हमर जगमग रात्रि उपरांत
हरियाली बगिया में फ़ूल जे खीलल
उमंग पटना सन शहर संग गामे गाम ।

बसलौं संजुक्त परिवार संग भोरे भोरे
देखलौं गरीब गामक भिन्सर द्वारे-द्वार
रहलौं महरूम अपने परिवार के देखि
देखि शहर के भिनसर बस अपने द्वार 

बेफिक्र घूमलौं माइटे-माइट नै चप्पल
खेतक आड़ि दिस टोली भोरे-भिनसरे
दर्शन आड़ि के बदला जे सड़कक लेन
देखू कतय छी पेट खातिर भोरे भोरे ।

कखनो भेल भिनसर सँ पहिले भोर आ
कखनो भेल सूरजक किरनक उपरांत
सभ भिनसर केँ दर्पण में नित अर्पण
करि हम शुरू प्रसन्न मन अप्पन काम 
...

गुरु 

माता-पिता संग विद्यमान छथि गुरु
पल-२ डगर-२ उपस्थित छथि गुरू
मनुष्यता के लेप सँ ढाँचा बनबैत
सदैव अक्षुण्ण छथि जे हमर, ओ गुरू ।

पोथी हाथमे मुदा शब्द जुबान पर
शिक्षा के डिग्री सँ दूर हुनर जोर पर
उमंग मास्साबक, तरंग कम ने शिष्यक
छलाह एक सौं एक बढिकS ओ गुरू 

जीवनक सफरमे साम्य केँ भावमे
उत्कृष्ट सदभाव,  प्रेमक परिसीमामे,
चटकन सँ सटकन केँ मधुर यादिमे,
शब्द-२ रहत समेटल मनमे यौ गुरु ।

तेल-पानि मिलन नै, घड़ा चाहे भरल
गुरु-शिष्यक मिलान नै, बस शीश झुकल,
रहब नतमस्तक चाहे जहाँमे जतय रहब
कोटि-२ नमन छथि अटल हमर ओ गुरु 
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कवि - विजय बाबू
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@yahoo.com