गीत
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छन-छनन-छन पायल बाजय
खन-खनन-खन कँगना
ताहि मिथिला मे भोरे-भोर
कोइली बाजय अँगना
गोड़हा-चिपड़ी पाथिक' काकी
निपलनि गोसाउनक पीड़ी
माय दुआरि पर चाउर फटकिक'
कयलनि ठांओं-पीढ़ी
मैंयाँ रन्हती छठिक तस्मै
हुनके हिस्सा खड़ना
ताहि मिथिला मे...
मस्जिद मे अज़ान गूँजल त'
काँख लिधुरिया ल' क' ठाढ़ि
आँचर उड़ियौती नहिरा मे
ससुरा मे लेती नुआ काढ़ि
हाथ हुनर छनि, पैर झूमर छनि
आँखि मे सुन्नर सपना
ताहि मिथिला मे...
बैसल नहि भेटती मिथिलानी
बरु कतबो रौद-बरखा
नहि किछुओ त' नचौती टकुरी
चलबे करतै चरखा
पढ़ि-लिखिक' आइ परदेस मे बेटी
छोड़ा रहल छथि भरना
ताहि मिथिला मे...
....
कवि- अजित आज़ाद
कविक ईमेल आईडी- lekhakajitazad@gmail.com
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