Tuesday 16 October 2018

कनी बाजि दिऔ आ आन मैथिली कविता / अरुण कुमार लाल दास

कनी बाजि दिऔ!


हे  प्रिये  !
कनी  बाजि  दिऔ
कतेक  भाव  छी 
अहाँ  मन मे  छुपौने 

खंजन  नयन ,
गुलाबी  ई  चितवन 
ऊठय , लहर  मारय
हिलकोर  मन मे
बहल जा रहल जनु 
सरिता  शराबी

अधर क हँसी  मृदु
गुलाबक  कली  हो 
हमरा   मोताबिक  
कनी  साजि  लियौ,
हे  प्रिये ! 
कनी  बाजि  दिऔ.



बाढिक संत्रास 

प्रकृति केहन निष्ठुर भेल देखू
झमझम वर्षा बरिस रहल अछि 
भीजल वसन चिलकाक कोर मे
टुकड़ा चानक चमकि रहल अछि  

कोठा सोफा सजल बिछौना
थहा थही मे गृहणी कनियाँ
लह लह करैत धन खेती सब 
गदगद मालिक आ बनिहारक 
मुस्की आ मुस्कान लिखै छी
समय के हम सम्मान लिखै छी ।
बान्ह टुटल कोशी कछाड़ मे
मिनटहि मे सब भेल हतप्रभ
के भागत आ कोना क भागत
कथी समेटी की धय राखी,
चौकी पर चौकी गेटय मे 
लागल गृहपति आ नेना सब
की लय भागि जाइ जल्दी सँ
त्राहि करैत इन्सान लिखै छी
समय भेल बेइमान लिखै छी

गाय भैंस सब तोरलक खूंटा
मांउ मांउ करै पररू सब
बकड़ी छकड़ी सब भसियायल
बच्चा बुच्ची नेना भुटका
भूखे आकुल व्याकुल भ क
खोजि रहल छथि तीमन टटका
     
गृहपति लागल छथि जोगाड़ मे
ससरि जाइ सब क्यो मिलि झटका
क्यो ककरो घुरि नहि देखैत अछि 
सबहक सांस अटकि गेल छै
एहन पराभव  छल नहि देखल 
धैयॅक इम्तिहान लिखै छी 
समय बहुत बलवान लिखै छी ।

कहाँ नाह आ कहाँ पुछारी
सब किछु भासि गेल भंवर मे
बचल न चुटकी भरि दाना घर मे ,
पुल पुलिया मे फसल लहासक
गणना होइत अनुमान देखै छी
अपना के अपने स सानत्वना  दैत, 
कथा महान लिखै छी
समय बहुत बलवान लिखै छी
बाढिक ई संत्रास भयंकर 
दुदिॅनक हम निदान तकै छी
मिथिला बासी होउ अग्रसर
जन जन के आह्वान लिखै छी.
..............
कवि- अरुण कुमार लाल दास 
निवास -मधुबनी

कविक आत्मम-परिचय :

बचपन स साहित्यक प्रति लगाव रहल। सतत किछु किछु पढैत लिखैत रहलौं । कथाकार कें रूप मे मुन्सी प्रेमचंद हमर सबसॅ प्रिय कथाकार छथि ।ताहि दिन मिथिला मिहिर पत्रिका छपैत छल । मैथिली अपन मात्रृभाषा रहने बहुत पियरगर अछि । हरिमोहन झाक रंगशाला मे डूबि जाइत छलहुॅ । मिथिला मिहिर मे नेना भुटकाक चौपाड़ि मे वाल कथा सब लिखैत  रही। प्रकाशित सेहो होइत रहल । दस पनरह कथा सेहो प्रकाशित भेल छल हमर लिखल।बैंक मे अधिकारी रहैत  कहियो काल पढि लैत  छलहुॅ साहित्य के नाम पर किछु मुदा लिखब संभव नहि भ' सकल स्टेट बैंक स रिटायर भेला सन्ता किछु पहिलका रूचि फेर जागल अछि त ओकरे मुतॅरूप देबय मे लागल किछु किछु पढैत लिखैत कविता आ लघुकथा सेहो लिखने छी। लिखिए रहल छी । हिंदी मे सेहो  किछु कविता लिखलहुॅ अछि  ।आगां सेहो प्रयास जारी रहतै।अहाॅ सभक सहयोग अपेक्षित अछि ।


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