श्री विजय बाबु मैथिलीमे कविता लिखबाक प्रयास कयलन्हि अछि. हिनकर मैथिलीक प्रति अनुराग केँ प्रोत्साहन देबा लेल हुनकर दू टा कविता प्रस्तुत अछि-
शुभ भिनसर
अगणित अनुपम स्वागत भोरे भोरे
जीवनक चक्र चलय भोरे अनहारे
परमात्मक असीम कृपा बरसय
मनमस्त सूरजक लाली सँ प्रभात ।
मात-पिताक केर आशीर्वाद पाबि
संगहि पैघक आ गुरुक आशीर्वाद
भारतवर्ष केँ हजार सालक परम्परा
स्नान-ध्यान संग करि सूर्य नमस्कार ।
छल जे दीवालीक प्रातः केँ सुप्रभात
जन्म भेल हमर जगमग रात्रि उपरांत
हरियाली बगिया में फ़ूल जे खीलल
उमंग पटना सन शहर संग गामे गाम ।
बसलौं संजुक्त परिवार संग भोरे भोरे
देखलौं गरीब गामक भिन्सर द्वारे-द्वार
रहलौं महरूम अपने परिवार के देखि
देखि शहर के भिनसर बस अपने द्वार ।
बेफिक्र घूमलौं माइटे-माइट नै चप्पल
खेतक आड़ि दिस टोली भोरे-भिनसरे
दर्शन आड़ि के बदला जे सड़कक लेन
देखू कतय छी पेट खातिर भोरे भोरे ।
कखनो भेल भिनसर सँ पहिले भोर आ
कखनो भेल सूरजक किरनक उपरांत
सभ भिनसर केँ दर्पण में नित अर्पण
करि हम शुरू प्रसन्न मन अप्पन काम ।
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गुरु
माता-पिता संग विद्यमान छथि गुरु
पल-२ डगर-२ उपस्थित छथि गुरू
मनुष्यता के लेप सँ ढाँचा बनबैत
सदैव अक्षुण्ण छथि जे हमर, ओ गुरू ।
पोथी हाथमे मुदा शब्द जुबान पर
शिक्षा के डिग्री सँ दूर हुनर जोर पर
उमंग मास्साबक, तरंग कम ने शिष्यक
छलाह एक सौं एक बढिकS ओ गुरू ।
जीवनक सफरमे साम्य केँ भावमे
उत्कृष्ट सदभाव, प्रेमक परिसीमामे,
चटकन सँ सटकन केँ मधुर यादिमे,
शब्द-२ रहत समेटल मनमे यौ गुरु ।
तेल-पानि मिलन नै, घड़ा चाहे भरल
गुरु-शिष्यक मिलान नै, बस शीश झुकल,
रहब नतमस्तक चाहे जहाँमे जतय रहब
कोटि-२ नमन छथि अटल हमर ओ गुरु ।
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कवि - विजय बाबू
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@yahoo.com
Bahut sundar
ReplyDeleteयदि blogger.com प्रर्र गूगल पासवर्ड सँ login करिक' एतय कमेंट करबै त' ओकर प्रोफाइल पिक्चर आ नाम एतय देखाई पड़त.
DeleteKya baat hai jay jay
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