समय-चक्र आ फिकिरक दुहूकमे
समय अहाँ आबै छी समय सँ
मुदा समय सँ चलियो जाई छी
समय अहाँक शिकारमे हम, आ
ब्योंत में सदिखन अहाँ रहै छी।
अहाँक सोझा आबि बूझि नै
जानी नहि हम की की पबै छी?
कतेक कुंठा सेहो गड़ल अछि
बीत सँ अहाँ दहाड़ि रहल छी।
समय अहाँक अकल्पनीय परिधिमे
सब संगहि चलय, प्रयासमे छी
अहाँक राह बिनु रोड़ा, हमरा सँ जुदा
संगहि लेल झटकारि रहल छी।
मोनक कोन में दर्द एक शूल सन
हँसि दैत छी तैयो बसंतक फूल सन
काल-कालक मध्यक अंतरालमे
उमंग स्वाधीनता सँ पाबि रहल छी।
समय अहाँक़ अद्वीतिय चालमे
हम बालक उम्मीद केँ सटने रहै छी
देखू, अहि चालमे कोनो चाल चलू नै
देखू, अहि चालमे कोनो चाल चलू नै
हम शिष्ट बनि संग चलि रहल छी।
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कवि - विजय बाबू
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@yahoo.com
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