कविता
हाथ खिया गेल साबुन रगड़ैत
टीवी खोलिते डर लगैए
उचटि गेल मोन मोबाइलो सँ
शमशाने सन घर लगैए
आब की करबै कक्का हम
बंद भेल छैक चक्का यौ
लसफ़स-लसफ़स मोन करैए
बनि गेलहुँ मुहतक्का यौ
मुह जाबिक' बड़द भेल छी
पाउज करैत छी मोन दबने
सूतल-सूतल निन्न पड़ायल
उखड़ल बाइसिर पोन दबने
परिथन लगबैत-लगबैत आब
बुझि गेलियै रोटी के भाव
बन्हा गेल अछि गरदनि मे घंटी
सुतरि गेलनि घरनी के दाव।
गीत
जिनगी के गाड़ी मे सभ छै सवार
किछुए ओहार मे, छै बाकी उघाड़
देखाउंसे मे बहै छै बाँचल-खुचल रस
कद्दुकस, कद्दुकस, कद्दुकस....
बैठल-बैठारी के भरि थारी भात
काज लेल उताहुल के मारैए लात
मगन अछि बीच बला रंगे-रभस
कद्दुकस, कद्दुकस, कद्दुकस
घर मे ढुका देलक एकटा कोरौना
कहिया ई भागत बज्जर खसौना
घरनी के आगू सभ मरदा बेबस
कद्दुकस, कद्दुकस, कद्दुकस
झड़कल सँ नीक, झंपने रहू मुह
कलेमचे करैत रहू, नै कहियौ ऊँह
साँझ होइत-होइत कहती चाबस
कद्दुकस, कद्दुकस, कद्दुकस.
.......
कवि - अजीत आज़ाद
कविक ईमेल - lekhakajitazad@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु ब्लॉगक ईमेल - editorbejodindia@gmail.com
No comments:
Post a Comment