Tuesday 1 October 2019

हे माँ जगत जननी दुर्गे देवी / कवि - विजय बाबू

जय माँ भगवती

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मिथिला चित्रकला - बिमला दत्त

हे माँ जगत जननी दुर्गे देवी
अहाँक शक्तिमे हमर भक्ति
अहाँकक असीम कृपा सँ रहै सृष्टि
अहाँकक अनुकंपा सँ करि अनुभूति
अहाँक नमस्कार बारंबार नमस्कार अछि।

हे सप्तश्लोकी नवरात्र विराजे मैया
अहाँक़ रूप अनेक, श्रद्धा हमर एक
अहाँक सोझा देवता सिर झुकावथि
अहाँक सम्मानमे अप्सरागण नाचथि गावथि
अहाँक नमस्कार बारंबार नमस्कार अछि।

हे माँ नौ नाउसँ प्रसिद्ध जगदंबिके
अहाँक बत्तीस रूपमे रचल संसार पूर्ण
अहाँक विशाल ललाटमे पसरल रौद्ररूप
अहाँक चरणतल जे झुकल सभ असुरदल
अहाँक नमस्कार बारंबार नमस्कार अछि ।

हे सृष्टिके पालनहारी दुर्गा माँ
अहाँक पृथक रूप आ त्रिशूलक धार
अहाँक हँ उच्चाटन तीनू लोकक पार
करी हम अहाँक मान, रखने छी बस यैह अरमान
अहाँक नमस्कार बारंबार नमस्कार अछि।

हे जग दुःखहारिणी दुर्गा मैया
अहाँक आराधना करी नित्य हम
अहाँक पूजा करी बिनु विधि बूझने हम
हम बालक के त्रुटि क्षमा करियौ माँ
अहाँक नमस्कार बारंबार नमस्कार अछि।
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कवि - विजय बाबु
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