कविता
अछि आई दिन धन्वन्तरिक
शुभ-मंगलक दिन धनतेरस
अछि दीपोपंच पर्वक आरंभ
धातु, मेवाक बाजार सजल।
अछि सुन्नर मन भोरे-भिनुसरे
सुन्नर उमंगक दिन धनतेरस
छथि सजना, संगहि घूमि हम
चारू दिस जगमग चमकत।
देखि सब हम की की कीनब
भरि दिन लक्ष्मीक धनतेरस
उच्छल तरंग में अछि अंगना
पाबी हम एक सुन्नर गहना।
अछि आजूक दिन हर्ष दुगुना
साफ सुन्नर दिन जे धनतेरस
भेटल खन खनखनाइत कंगना
रौशन जग रहै अखंड अहिना।
अछि नै कंगना मात्र ई हमर
भेंट लक्ष्मीक दिन धनतेरस
पंख मोरक सन हर्षित हम
सजल जिनगी भरि ई कंगना।
अछि अंतर्मन सँ सजल मोन
आबै अनगिनत दिन धनतेरस
जीवनक गोलचक्र -साल, महीना
घूमय संगहि खनखन कंगना।
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कवि - विजय बाबू
कविक ईमेल - vijaykumar.scorpito@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@yahoo.com
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