कविता
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मोन पड़ैये घर माईटक भीत केँ
चार सँ टप टप आ साय साय,
ख़ुशी आ गम सभक एक्कहि
मनुवा उमंगभरि दिन आ राईत ॥
मोन रे, दिन दूना राति चौगुना
बचपन सँ अक्खन धरि सुनि
सुनि बस यैह जाधरि ज़िनगी
सुनि ताधरि आ करि उन्नति ।
मोन कहैया विश्व में चमकैत
सुनी भारतवर्षक उच्छल तरंग,
सूनी दिलकेँ, झांक तू धरा पर
मनुवा शीर्ष पर घूमैत घूमैत।
मोन रे, कहै ज़िंदगी रही सुखी
सुखी रहि सकी सभ संग संग
सुखी रहै घाटी-हिम, गंगा, जमुना
मोनक भ्रममे रहय नै कोई सुखी ।
मोन होइये कोना पाबी सुखी
सुख पाबी मान सम्मान देखि
सुखी-संसार चलै चारू दिस
मनुवा सुन्नर चलै देखैत देखैत।
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कवि - विजय बाबू
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