Tuesday 8 October 2019

फेर खूब भेलौ जे रावण दहन / कवि - विजय कुमार

                                          दशहरा पर कविता

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अयोध्या नगरी देखि तू
ठानिकS घमंडमे चूर-चूर
रामजीके सौम्यभाव संग
लड़िकS तू भेलएँ चूर-चूर ।

निड्डर छलएँ सेहो मुदा
अहंकारी रहएँ की कम तू ?
लंका संग दशानन मुख
जरलौ खूब जो रे रावण ॥

रामजीक संग बानर सेना
आ तरकश सँ तीर निशाना
समुद्रपार दूर तोहर लंका
रामसेतु सँ दूर नै रहलौ,रावण ।

सीताजीक वृक्षक तलमे
चाल छलौ तोहर अलबेला
तत्पर हरदम हनुमान तहिना
छलमन जरलौ जो रे रावण ॥

लक्ष्मण संग सेहो सदिखन
बूटीक लेल पर्वत हाथेपर,
आनिलथि जे हनुमान सेना
सब देखलएँ तू रे लंकापति ।

गुरु विश्वामित्र शिष्य देखि
गुरूर तोहर खूब जे टुटलौ,
राम-लक्ष्मण के रीति देखि
जरूर जर तू जो रे रावण ॥

रावण जर तू फेर एक बेर
असुर मोन पड़बएँ जखने तू
जगमे सुखी सब देर-सेवर
कहि हम सब जो रे रावण ।

विजयादशमीक रामलीलामे
फेर खूब भेलौ जे रावण दहन
अदृश्य रावण जँ मरय संगहि
नव सूरज सँ मरि जो रे रावण ॥
...
कवि - विजय बाबू
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